मन को शांति के लिए

💐💐🌱🌱ॐ नम: शिवाय 💐💐🌴🌴

किसी के मन को शांति देने के लिए इस मंत्र की एक माला का जप पर्याप्त है। जो जातक मन पर नियंत्रण चाहते हैं वे रोजाना सुबह अथवा शाम के समय शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर जल अथवा दूध की धारा प्रवाहित करते हुए इस मंत्र का जाप करते रहें।

सोमवार के दिन इन मंत्रों से करें भगवान शिव को प्रसन्न, होगी हर मनोकामना पूरी

सोमवार के दिन इन मंत्रों से करें भगवान शिव को प्रसन्न, होगी हर मनोकामना पूरी

सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार को विधिवत तरीके से भोलेनाथ की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं. महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति की कामना के साथ सोमवार का व्रत रखती हैं. मान्यता है कि यदि कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए सोमवार का व्रत रखती हैं तो उन्हें मनचाहे उपयुक्त जीवनसाथी की प्राप्ति होती है. इसके अलावा यदि अविवाहित पुरुष भी यह व्रत करते हैं तो उनके विवाह में आ रही बाधा दूर हो जाती है.

भगवान शिव बेहद क्रोध वाले देवता माने जाते हैं लेकिन इसके साथ ही उन्हें सबसे जल्दी प्रसन्न और कृपा होने वाला देवता भी माने जाते हैं. भगवान शिव की भक्ति बिना मन्त्रों के अधूरी है. आइए जानते हैं भगवान शिव के प्रभावशाली मन्त्रों के बारे में-

महामृत्युंजय मंत्र–
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🚩– ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

शिव जी का मूल मंत्र–
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🚩– ऊँ नम: शिवाय।।

📿भगवान शिव के प्रभावशाली मंत्र-
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🚩- ओम साधो जातये नम:।।

🚩- ओम वाम देवाय नम:।।

🚩- ओम अघोराय नम:।।

🚩- ओम तत्पुरूषाय नम:।।

🚩- ओम ईशानाय नम:।।

🚩-ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।।

📿रूद्र गायत्री मंत्र–
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🚩ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।।

महामृत्युंजय गायत्री मंत्र–
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
🚩– ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ
हर हर महादेव*
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महाशिवरात्रि

शिवरात्रि पर क्या करे :—-
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महाशिवरात्रि

रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं; अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते है । रात के चार प्रहरों में से जो बीच के दो प्रहर हैं, उन्हें निशीधकाल कहा गया हैं | विशेषत: उसी कालमें की हुई भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फल को देनेवाली होती है – ऐसा जानकर कर्म करनेवाला मनुष्य यथोक्त फलका भागी होता है |

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम कल्याणकारी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। शिवरहस्य में कहा गया है

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अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं।

रात्रि में चार प्रहर की पूजा करें।

जब किसी का मन विचलित हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख मिल रहे हो तब शिवलिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है. इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए.।अभिषेक के समय “श्रीरुद्राष्टकम” अथवा “शिवतांडवस्‍तोत्रम” का पाठ शिव को अत्यंत प्रसन्नता प्रदान करता है। परन्तु अगर आप इनका पाठ नहीं कर सकते तो “ॐ नमः शिवाय” का ही जप करें। यह शिव का सबसे सुन्दर तथा आसान, पञ्चाक्षर मंत्र है।
गायत्री से उत्पन्न, चार कलाओं वाला, चौबीस अक्षरों से युक्त
“तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥”

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गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है. शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी गई है.।
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भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने के लिए चंदन का या गुलाब का इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें.।astroshaliini
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सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा. शिव को गंगाधर कहा जाता है. शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है. गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है. दूध में मिलाकर इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरूर बोलना चाहिए.।
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घी व शहद- रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें। भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें।
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जल से अभिषेक -हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।
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दूध से अभिषेक- शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें।
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फलों का रस- अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें।astroshaliini.wordpress.com
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सरसों के तेल से अभिषेक- ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें।
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काले तिल से अभिषेक-तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें।
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शहद मिश्रित गंगा जल- संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें।
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कपूर मिला जल शिवजी को अर्पित करे उस से हेल्थ प्रोब्लेम्स ख़त्म होती है ।
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पंचामृत से शिवलिंग पर.अभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पुरी होती है ।
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108 वेल पत्र शिवजी पर अर्पित करे विवाह सम्बन्धी प्रोब्लेम्स है तो । एक ही वेल पत्र को धोकर बार बार चढ़ा सकते है ।
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नौकरी के लिये जल अभिषेक करे और 11घी के दीपक जलाये और प्राथना करे ।
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ॐ जूँ स : माम पालय पालय का रुद्राक्ष की माला से जप करे । अगर कोई बीमारी पीछा नही छोड़ रही तो
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बिल्व पत्र वृक्ष की महिमा

बिल्व पत्र वृक्ष की महिमा
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“”बिल्वाष्टक”” बोलते हुए तीन पत्ती वाला बिल्व पत्र शिवलिंग पर इस तरह समर्पित करें की चिकना भाग नीचे रह कर शिवलिंग को स्पर्श करे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाता है, वह पत्र-संख्या के बराबर युगों तक कैलास में सुख पूर्वक वास करता है। पुनः श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होता है। विद्या, पुत्र, सम्पत्ति, प्रजा और भूमि-ये सभी उसके लिए सुलभ रहते हैं।

बिल्वाष्टकम
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किसी भी प्रकार की परेशानी दूर करने के लिए या मनोकामना पूर्ती के लिए 1008 बिल्व पत्र शिव सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए अर्पित करें।
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इसके बाद धूप, दीप और नैवेद्य भगवान शिव को अर्पित करें।भगवान शिव को जो पत्र पुष्प प्रिय हैं उनमे बिल्बपत्र प्रमुख है । बिल्बपत्र को शिव पर अर्पित करने से धन -संपदा ,ऐश्वर्य प्राप्त होता है । लिंग पुराणानुसार ‘बिल्ब पत्रे स्थिता लक्ष्मी देवी लक्षण संयुक्ता ‘अर्थात बिल्ब पत्र में लक्ष्मी का वास माना जाता है । बिल्ब वृक्ष को श्री वृक्ष माना जाता है । ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त के अनुसार माँ लक्ष्मी  के तपोबल से बिल्बपत्र उत्पन्न हुआ ,जो दरिद्रता को दूर करने वाला है । यह न केवल बाहरी बल्कि भीतरी दरिद्रता को भी दूर करने में समर्थ है ।
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108 बिल्व पत्रों पर चंदन से नमः शिवाय लिखकर इसी मंत्र का जप करते हुए शिवजी को अर्पित करें। 31 दिन तक यह प्रयोग करें, घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आएगी, रोग, बाधा, मुकदमा आदि में लाभ एवं व्यापार में प्रगति होगी व नया रोजगार मिलेगा। यह एक अचूक प्रयोग है।
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किसी भी प्रकार की परेशानी दूर करने के लिए या मनोकामना पूर्ती के लिए 1008 बिल्व पत्र शिव सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए अर्पित करें।

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आमलकी एकादशी

आमलकी एकादशी

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है।

आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।

आमलकी यानी आंवले को शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को. विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया. आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है. इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है. भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं  एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है. इस एकादशी को आमलकी एकादशी (Amlki Ekadasi) के नाम से जाना जाता है.

आमलकी एकादशी व्रत विधि

इस एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं. मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें. संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें.

भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें. सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें. पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें. इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें. कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें. इसके पर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें. कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं. अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें. रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें.

द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें. इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें.

होलाष्टक शुरू–

होलाष्टक शुरू–

होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है जो पूर्णिमा तक जारी रहता है।  होलाष्टक आरम्भ हो रहे हैं तथा यह 1 मार्च तक चलेंगे. होलाष्टक 1 मार्च तक चलेंगे तथा होलिका दहन 1 मार्च की रात को होगा । ऐसे में इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि होलाष्टक से होलिका दहन तक इन 7 दिनों में किसी शुभ कार्य को किया जाए तो उसमें बार-बार विघ्न आते हैं. इस दौरान शादी, नामकरण संस्कार, ग्रह प्रवेश मुंडन, मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है। वैज्ञानिक एवं पौराणिक विवरण के मुताबिक, होली के आठ दिन पूर्व अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रकृति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है।

Rahu ke 108 nam

ओं राहवे नमः ।
ओं सैंहिकेयाय नमः ।
ओं विधुन्तुदाय नमः ।
ओं सुरशत्रवे नमः ।
ओं तमसे नमः ।
ओं फणिने नमः ।
ओं गार्ग्यायणाय नमः ।
ओं सुरागवे नमः ।
ओं नीलजीमूतसङ्काशाय नमः । 9 |

ओं चतुर्भुजाय नमः ।
ओं खड्गखेटकधारिणे नमः ।
ओं वरदायकहस्तकाय नमः ।
ओं शूलायुधाय नमः ।
ओं मेघवर्णाय नमः ।
ओं कृष्णध्वजपताकावते नमः ।
ओं दक्षिणाशामुखरताय नमः ।
ओं तीक्ष्णदम्ष्ट्रधराय नमः ।
ओं शूर्पाकारासनस्थाय नमः । 18

ओं गोमेदाभरणप्रियाय नमः ।
ओं माषप्रियाय नमः ।
ओं कश्यपर्षिनन्दनाय नमः ।
ओं भुजगेश्वराय नमः ।
ओं उल्कापातजनये नमः ।
ओं शूलिने नमः ।
ओं निधिपाय नमः ।
ओं कृष्णसर्पराजे नमः ।
ओं विषज्वलावृतास्याय नमः । 27

ओं अर्धशरीराय नमः ।
ओं जाद्यसम्प्रदाय नमः ।
ओं रवीन्दुभीकराय नमः ।
ओं छायास्वरूपिणे नमः ।
ओं कठिनाङ्गकाय नमः ।
ओं द्विषच्चक्रच्छेदकाय नमः ।
ओं करालास्याय नमः ।
ओं भयङ्कराय नमः ।
ओं क्रूरकर्मणे नमः । 36

ओं तमोरूपाय नमः ।
ओं श्यामात्मने नमः ।
ओं नीललोहिताय नमः ।
ओं किरीटिणे नमः ।
ओं नीलवसनाय नमः ।
ओं शनिसामान्तवर्त्मगाय नमः ।
ओं चाण्डालवर्णाय नमः ।
ओं अश्व्यर्क्षभवाय नमः ।
ओं मेषभवाय नमः । 45

ओं शनिवत्फलदाय नमः ।
ओं शूराय नमः ।
ओं अपसव्यगतये नमः ।
ओं उपरागकराय नमः ।
ओं सूर्यहिमांशुच्छविहारकाय नमः ।
ओं नीलपुष्पविहाराय नमः ।
ओं ग्रहश्रेष्ठाय नमः ।
ओं अष्टमग्रहाय नमः ।
ओं कबन्धमात्रदेहाय नमः । 54

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ओं यातुधानकुलोद्भवाय नमः ।
ओं गोविन्दवरपात्राय नमः ।
ओं देवजातिप्रविष्टकाय नमः ।
ओं क्रूराय नमः ।
ओं घोराय नमः ।
ओं शनेर्मित्राय नमः ।
ओं शुक्रमित्राय नमः ।
ओं अगोचराय नमः ।
ओं माने गङ्गास्नानदात्रे नमः । 63

ओं स्वगृहे प्रबलाढ्यकाय नमः ।
ओं सद्गृहेऽन्यबलधृते नमः ।
ओं चतुर्थे मातृनाशकाय नमः ।
ओं चन्द्रयुक्ते चण्डालजन्मसूचकाय नमः ।
ओं जन्मसिंहे नमः ।
ओं राज्यदात्रे नमः ।
ओं महाकायाय नमः ।
ओं जन्मकर्त्रे नमः ।
ओं विधुरिपवे नमः । 71

ओं मत्तको ज्ञानदाय नमः ।
ओं जन्मकन्याराज्यदात्रे नमः ।
ओं जन्महानिदाय नमः ।
ओं नवमे पितृहन्त्रे नमः ।
ओं पञ्चमे शोकदायकाय नमः ।
ओं द्यूने कलत्रहन्त्रे नमः ।
ओं सप्तमे कलहप्रदाय नमः ।
ओं षष्ठे वित्तदात्रे नमः ।
ओं चतुर्थे वैरदायकाय नमः । 81

ओं नवमे पापदात्रे नमः ।
ओं दशमे शोकदायकाय नमः ।
ओं आदौ यशः प्रदात्रे नमः ।
ओं अन्ते वैरप्रदायकाय नमः ।
ओं कालात्मने नमः ।
ओं गोचराचाराय नमः ।
ओं धने ककुत्प्रदाय नमः ।
ओं पञ्चमे धृषणाशृङ्गदाय नमः ।
ओं स्वर्भानवे नमः । 90

ओं बलिने नमः ।
ओं महासौख्यप्रदायिने नमः ।
ओं चन्द्रवैरिणे नमः ।
ओं शाश्वताय नमः ।
ओं सुरशत्रवे नमः ।
ओं पापग्रहाय नमः ।
ओं शाम्भवाय नमः ।
ओं पूज्यकाय नमः ।
ओं पाठीनपूरणाय नमः । 99

ओं पैठीनसकुलोद्भवाय नमः ।
ओं दीर्घ कृष्णाय नमः ।
ओं अशिरसे नमः ।
ओं विष्णुनेत्रारये नमः ।
ओं देवाय नमः ।
ओं दानवाय नमः ।
ओं भक्तरक्षाय नमः ।
ओं राहुमूर्तये नमः ।
ओं सर्वाभीष्टफलप्रदाय नमः । 108 |

|| इति श्री राहु अष्टोत्तरशतनामावली ||

Hanuman Ji

Lalitha Devi Colors of Bhakti

Narsingh Bhagwan

Saibaba

Lalita Mata

Shri Mahalaxmi

Venkateswara Swamy

Hanuman Ji

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महासुदर्शन महाविष्णु चक्रास्त्र स्तोत्र

🌷🌷🌷महासुदर्शन महाविष्णु चक्रास्त्र स्तोत्र 🌷🌷🌷

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

ॐ नमो  पुरूषोत्तमाय  अव्यक्त महापुरुषाय ।
ॐ श्रीं श्रीनिवासाय नमः।
ॐ नमो नारायणाय वासुदेवाय।
ॐ ह्रीं नमो नारायणाय अनन्ताय श्रीं ॐ
ॐ नमः भगवते जनार्दनाय
ॐ सर्वेश्वराय सर्वविघ्न विनाशाय मधुसुदनाय ठ: ठ:।
ॐ नमो भगवते महाविष्णवे सुरपतये सुरसिंहाय महाअनंताय   
     महाविराट् महापुरूषाय।
ॐ सुदर्शनाय च विदमहे महाज्वालाय  धीमहि तन्नो चक्र:
       प्रचोदयात  

विनियोग

ॐ अस्य श्री सुदर्शन चक्रास्त्र मंत्रस्य अघोर ऋषिः अनुष्टुपछन्दः सुदर्शन देवता ॐ अ बीजं हूँ शक्तिः फट् कीलकं सर्वोपद्रव नाशनार्थे जपे विनियोगः ।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि पूर्व दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि अग्नि दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि दक्षिण दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि नैर्ऋत्य दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि पश्चिम दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि वायव्य दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि उत्तर दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि ईशान दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि ऊर्ध्व दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि अंतरिक्ष दिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऐहि ऐहि अधोदिशायां बंधय बंधय हुं फट् स्वाहा।

अंगन्यास
ॐ आचकाय हृदयाय नमः । ॐ विचक्राय शिरसे स्वाहा । ॐ सुचक्राय शिखायै वषट्। ॐ असुरान्तक चक्राय कवचाय हुँ। ॐ सर्वलोक रक्षक चक्राय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ सुदर्शन चक्राय अस्त्राय फट् ।

करन्यास

ॐ आचक्राय अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ विचक्राय तर्जनीभ्यां नमः । ॐ सुचक्राय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ असुरान्तक चक्राय अनामिकाभ्यां नमः। ॐ सर्वलोक रक्षक चक्राय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ सुदर्शन चक्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

🍀🌹🍀श्रीविष्णु ध्यान🍀🌹🍀

ॐ नमो वासुदेवाय नमः संकर्षणाय च ॥ प्रद्युम्नायादिदेवायानिरुद्धाय नमो नमः ।
नमो नारायणायैव नराणां पतये नमः ॥
नरपूज्याय कीर्त्याय स्तुत्याय वरदाय च।
अनादिनिधनायैव पुराणाय नमो नमः ॥
सृष्टिसंहारकर्त्रे च ब्रह्मणः पतये नमः ।
नमो वै वेदवेद्याय शङ्खचक्रधराय च।।
कलिकल्मषहर्त्रे च सुरेशाय नमो नमः ।
संसारवृक्षच्छेत्रे च मायाभेत्रे नमो नमः ॥
बहुरूपाय तीर्थाय त्रिगुणायागुणाय च।
ब्रह्मविष्णवीशरूपाय मोक्षदाय नमो नमः ॥
मोक्षद्वाराव धर्माय निर्वाणाय नमो नमः |
सर्वकामप्रदायैव परब्रह्मस्वरूपिणे ।
संसारसागरे घोरे निमग्नं मां समुद्धर ।
त्वदन्यो नास्ति देवेश नास्ति त्राता जगत्प्रभो ॥
त्वामेव सर्वगं विष्णुं गतोऽहं शरणं ततः ।
ज्ञानदीपप्रदानेन तमोमुक्तं प्रकाशय ॥
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🌷🌷🌷सुदर्शन चक्र स्तोत्र🌷🌷🌷🌷

नमः सुदर्शनायैव सहस्त्रादित्यवर्चसे।।
ज्वालामाला प्रदीप्ताय सहस्त्राराय चक्षुषे।
सर्वदुष्टविनाशाय सर्वपातकमर्दिने ।।
सुचक्राय विचक्राय सर्वमन्त्रविभेदिने ।
प्रसवित्रे जगद्धात्रे जगद्विध्वंसिने नमः ॥
पालनार्थाय लोकानां दुष्टासुरविनाशिने।
उग्राय चैव सौम्याय चण्डाय च नमो नमः ॥
नमश्चक्षुः स्वरूपाय संसारभयभेदिने।
मायापञ्जरभेत्रे च शिवाय च नमो नमः ॥
ग्रहातिग्रहरूपाय ग्रहाणां पतये नमः ।
कालाय मृत्यवे चैव भीमाय च नमो नमः ॥
भक्तानुग्रहदात्रे च भक्तगोप्त्रे नमो नमः ।
विष्णुरूपाय शान्ताय चायुधानां धराय च ॥
विष्णुशास्त्राय चक्राय नमो भूयो नमो नमः ।
इति स्तोत्रं महत्पुण्यं चक्रस्य तव कीर्तितम् ॥
यः पठेत् परया भक्तया विष्णुलोकं स गच्छति ।
चक्र पूजाविधिं यश्च पठेद्रुद्र जितेन्द्रियः ।
स पापं भस्मसात्कृत्वा विष्णुलोकाय कल्पते ॥

🍀🌹🍀महासुदर्शन चक्रास्त्र🍀🌹🍀

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भो भो सुदर्शन चक्र धारणाय मम सर्वान् विघ्नान् नाशय- नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं हैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा। ह

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाअस्त्र राजाय प्रचण्ड सम्मोहनाय सदा मां रक्ष रक्ष सम हृदये सुस्थिरो भव वर प्रदो भव साक्षात्कार सिद्धि प्रदो भव चर्म चक्षुष्क दर्शन प्रदो भव चतुःषष्टि विद्याप्रवीणां कुरु कुरु क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः: हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महागरुड़ दूं स्वरूपाय मम शरीरे अमृतं वर्षा कुरु कुरु रां रीं रूं रैं रौं रः हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महामंत्र  स्वरूपाय मम समस्त शत्रून् मारय मारय काटय काटय छेदय छेदय पाशय पाशय भंजय भंजय उन्मूलय उन्मूलय घातय घातय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्रां त्रीं त्रूं  त्रैं त्रौं त्रः हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय आदित्य स्वरूपाय मम जन्मांगे स्थित समस्त क्रूर ग्रह बाधा उच्चाटय उच्चाटय शांतय शांतय टां टीं टूं टैं टौं ट: हुं फट स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाअस्त्र स्वरूपाय स्वतंत्र स्वमंत्र स्वयंत्र स्वज्ञान  प्रकाशय प्रकाशय गुप्तज्ञान उद्घाटय उद्घाटय परतंत्र परमंत्र परयंत्र नाशय नाशय ग्लां ग्लीं ग्लूं ग्लैं ग्लौं ग्लः हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाबल पराक्रमाय महावीर स्वरूपाय सर्व सिद्धिं कुरु कुरु स्त्रां स्त्रीं स्त्रूं  स्त्रैं स्त्रौं स्त्र: हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाअघोर अस्त्राय नरसिंह शक्ति युक्ताय त्रिभुवनाधीश्वराय तंत्र- क्षेत्राधिपतये मारण
मोहन उच्चाटन आकर्षण वश्यं सम्मोहन विद्या सहित सर्व तंत्र सिद्धिं कुरु कुरु क्रां क्री क्रूं क्रैं क्रौं क्र: हुं फट स्वाहा ।


ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय विष्णु दूताय देव रक्षकाय मम शरीरे सर्वान रोगान नाशय नाशय भ्रा भ्रीं भ्रूं भ्रैं भ्रौं भ्र:
  हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय परमहंस स्वरूपाय स्वर्ण वर्णाय सर्व शांति कुरु कुरु स्वस्तिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु श्रियं देहि देहि यशो देहि देहि आयुर्देहि देहि आरोग्यं देहि देहि पुत्र पौत्रान् देहि देहि सर्व कामांश्च देहि देहि लां लीं लूं लैं लौं लः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय अनंत कोटि कांति युक्ताय पंचाग्नि मयाय महालक्ष्मी प्रियाय परराष्ट्र गजाश्वं रथ सैन्य शस्त्रास्त्र बलं स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय खादय खादय विदारय विदारय भीषय भीषय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय प्रमुख प्रमुख स्फुट स्फुट डांडीं डूं डैडौं डः हुं फट् स्वाहा ॥

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय नारायण भक्ताय भीषण अग्नि युक्ताय ज्वल ज्वल ज्वाला स्वरूपाय मम सर्व दुःखं हर हर दारिद्र निवारय निवारय यर्श देहि यौवन देहि धनं देहि राज्यं देहि पां पीं पूं पैं पौं पः हुं फट् स्वाहा ॥

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाभव निवारणाय अघोर भैरवाय वैष्णव प्रियाय नम जन्मांगे स्थित देव ग्रह योनि ग्रह दैत्य ग्रह दानव ग्रह राक्षस ग्रह ग्रहा राक्षस ग्रह सिद्ध ग्रह यक्ष ग्रह विद्याधर ग्रह किन्नर ग्रह गन्धर्व ग्रह अप्सरा ग्रह भूत ग्रह पिशाच ग्रह कुष्माण्ड ग्रह गजादि ग्रह पूतना ग्रह बाल ग्रह सूर्यादि नव ग्रह मुद्गल ग्रहपितृ ग्रह वेताल ग्रह शत्रु ग्रह राज ग्रह चौरवैरि ग्रह नेतृ ग्रह देवता ग्रह अधि ग्रह व्याधि ग्रह अपस्मारादि ग्रह पुर ग्रह उरंग ग्रह सरज ग्रह उक्त ग्रह डामर ग्रह उदक ग्रह अग्नि ग्रह आकाश ग्रह भू ग्रह वायु ग्रह शालि ग्रह धान्यादि ग्रह विषय ग्रह ग्रहानाति ग्रह घोर ग्रह छाया ग्रह सर्प ग्रह विष जीव ग्रह वृश्चिक ग्रह काल ग्रह शाल्य ग्रहादि सर्वान ग्रहान नाशय नाशय कालाग्नि रुद्र स्वरूपेण दह दह अनुनय अनुनय शोषय शोषय मुख्य मुख्य कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय निमीलय निमीलय मर्दय मर्दय विद्रावय विद्रावय निधन निधन स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय उष्टन्धय उष्टन्धय मारय मारय चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड क्रोध क्रोध ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्ज्वल ज्वाला दित्य वदने उग्र ग्रस उग्र ग्रस विजृम्भय विजृम्भय घोषय घोषय मारय मारय हन हन ठां ठीं ठूं ठै   ठौं ठः हुं फट् स्वाहा ॥

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महासम्मोहनाय विष्णु शक्ति युक्ताय महाअपराजित शस्त्राय सर्व क्षेत्रे विजयं देहि देहि शां शीं शूं शैं शौं शः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महाकाली पू आयुधाय कृष्णण प्रियाय सर्वभूतमनाय सर्वादिशो बध्नामि महेश्वर पितामह 1 बध्नामि, गणेश बनामिकार्तिक नामि दशदिकपालान बध्नामि, सर्वान असुरान 3 बध्नामि ब्रह्मास्त्रान् बध्नामि, अघोर बध्नामि, सर्वान् सुरान् बध्नामि, सर्वान् द्विजान् बध्नामि, केशरीं बध्नामि, सत्वान बनामि, व्याघ्रान बध्नामि, गजान बध्नामि, चीरान बध्नामि, शत्रून बध्नामि, महामारी बध्नामि, सर्वा यक्षिणी बध्नामि, आब्रह्म स्तम्भ पर्यंत सर्वान चराचर जीवान् बध्नामि, माया ज्वालिनि स्तम्भय स्तम्भव सर्व वादीन् मूकय मूकय, कीलय कीलय, गतिं स्तम्भय स्तम्भय, चौरादि सर्वान दुष्ट पुरुषान् बन्धय बन्धय, दिशा विदिशा रात्र्याकर्षण पाताल घ्राण भ्रूचक्षुः शिरः श्रोत्रे हस्तौ पादौ गतिं मतिं मुखं जिह्वां वाचां शब्द पञ्चाशत् कोटि योजन विस्तीर्णान् भू-ब्रह्माण्ड देवान् बध्नामि, मण्डलं बध्नामि, व्याधान् क्रमय क्रमय रक्ष रक्ष फ्रां फ्रीं फूं फ्रैं फ़्रौं फ्रः हुं फट् स्वाहा ॥

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय सर्व सुपूजिताय घोर घोराय प्रलय स्वरूपाय मम शरीरे कुण्डलिनी शक्तिं प्रकाशय प्रकाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय अनंत शक्ति युक्ताय अकाल मृत्यु नाशनाय भक्त वत्सलाय योग सिद्धिं देहि देहि छूां छूीं छू
छैं छौं  छ: हुँ फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय रुद्र स्वरूपाय उत्कृष्ट फल प्रदानाय सहस्त्र भुजाय वरं देहि देहि अभयं देहि देहि झां झीं झूं  झैं झौ्ं  ,झ: हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय चिंतित मनोरथ पूर्णाय विष्णु सखाय मोक्षं कुरु कुरु धां- धीं धूं  धैं धौं धः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय असुरान्तकाय सर्व मंत्र स्वरूपाय परम योगेश्वराय त्वरित कार्य सिद्धि प्रदानाय खां खी्ं  खूं खँ खौंं खः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय शत्रु वाक् स्तम्भनाय आत्म विरोधिणां शिरोललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरु पाद रेणु दन्तोष्ठ जिह्वा तालु गुह्य गुदकटि सर्वांगेषु केशादि पाद पर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय घ्रां घ्रीं ध्रूं ध्रैं घौं घ्रः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय गोलोक मण्डल सुशोभिताय गारुड़ वारुण सार्प पर्वत वह्नि दैवत अघोर ब्रह्म रुद्र वज्रास्त्राणि भंजय भंजय निवारय निवारय तेषां मंत्र यंत्र तंत्राणि विध्वंसय विध्वंसय म्लां म्लीं ग्लूं म्लेंं म्लौं म्ल:
हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय ऋषिगण रक्षकाय अमित पराक्रमाय पुराण पुरुषाय दिव्यलोक स्थिताय समस्त शस्त्र भंजनाय आयुष्मन्तं कुरु कुरु सततं मम हृदये चिन्तित
मनोरथ सिद्धिं कुरु कुरु चिदानन्दकान्तकुरु चिदानन्दकालकृत वाकसिद्धिं देहि देहि अकाल मृत्यु विनाशनं कुरु कुरु अपमृत्यु निर्दलनं कुरु कुरु अकाल मृत्यु भय निवारय निवारय ममैव कर स्पशन नाना रोगान् नाशय नाशय सां सीं सूं सैं सौं सः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय महावैभव
स्वरूपाय लोकरक्षकाय समस्त शाप दहनाय
मम सर्व दुष्टान मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय
शोषय चण्डय चण्डय प्रचण्डय प्रचण्डय
चलां चली चलूं चलें च्लौं चलः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय इन्द्र सखाय श्री हरि सेवकाय कल्प वृक्ष स्वरूपाय मम कर्म क्षेत्रे स्थित पितृ ऋण मातृ ऋण स्त्री ॠण पुत्र ऋण मित्र ऋण राज्य ऋण देव ऋण ग्रह ऋण पंचभूत इत्यादि समस्त ऋणान् उन्मूलय उन्मूलय द्रां द्रीं द्रूं द्रैं
द्रौ द्र: हूं  फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय सूर्य स्वरूपाय व्योम केशाय यज्ञ स्वरूपाय मम सर्व दोष हारिणे सर्व विघ्न छेदिने सर्व पाप निकृन्तिने सर्वश्रृंखलात्रोटिने सर्वयंत्र स्फोटिने वां वीं वूं वै वौं  व: हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय नील हरित वर्णाय रत्न मुकुट सुशोभिताय सपरिवारम् मां रक्ष रक्ष क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं नमस्ते नमस्ते थां थीं थूं थें थौं थः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय स्वर्ण कमलासन स्थिताय रक्त वर्णाय अभयं कुरु कुरु कृपां कुरु कुरु सिद्धिं कुरु कुरु ब्लां ब्लीं ब्लू ब्लैं ब्लौं ब्ल:  हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय सिंह स्वरूपाय गजोद्धारणाय मम शरीरे सर्वान् विषान् शोकान् हर हर प्लां प्लीं प्लूं प्लैं प्लौं प्लः हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय योगासन स्थिताय कृष्ण कला युक्ताय रस सिद्धिं देहि देहि क्लां क्लीं क्यूं क्लैं क्लौं क्ल: हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय पीताम्बर युक्ताय धर्म रक्षकाय मम समस्त प्रकट अप्रकट भयान नाशय नाशय यां यीं यूं यैं
यौं यः हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन चक्राय काल स्वरूपाय सोम सूर्याग्नि नेत्रमयाय दिव्य वर्णाय ऋषि निम्बार्क अवतार युक्ताय हरि भक्तिं देहि देहि हरि शक्तिं देहि देहि ब्रां ब्रीं बूं ब्रैं ब्रौं ब्रः हुं फट् स्वाहा ।

महासुदर्शन महाविष्णु चक्रास्त्र  चक्रास्त्र माला मंत्र पठन के पश्चात् एक माला निम्नलिखित मंत्र की अवश्य जप करें।

मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रैलोक्यमोहनाय विष्णवे नमः ।।

श्री महासुदर्शनचक्रास्त्र सम्पूर्णम् ॥
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

(श्रीनारायण के सुदर्शन चक्र में ब्रह्माण्ड की सभी दिव्य शक्तियों का समायोजन है। अपने भक्तों की रक्षा के लिए भगवान का सुदर्शन चक्र सदैव तत्पर रहता है। महर्षि दुर्वासा ने परम वैष्णव भक्त अम्बरीश पर कृत्या चला दी परन्तु सुदर्शन चक्र ने कृत्या का भी सर्वनाश कर दिया और कुपित हो दुर्वासा जी के पीछे लग गये। दुर्वासा जी जिनसे कि सभी लोग थर-थर कांपते हैं अपनी प्राण रक्षा हेतु शिवलोक, देवीलोक, ब्रह्मलोक, देवलोक कहाँ- कहाँ नहीं गये पर उन्हें कहीं ठिकाना नहीं मिला, कहीं शरण नहीं मिली आखिरकार थक हारकर दुर्वासा श्रीहरि के चरणों में उपस्थित हुए वहाँ भी उन्हें शरण नहीं मिली तब जाकर श्री दुर्वासा ने प अम्बरीश से प्रार्थना की एवं अम्बरीश की प्रार्थना पर सुदर्शन चक्र शांत हुए। निम्बार्क मुनि के रूप में श्री सुदर्शन चक्र ने पृथ्वी पर अवतार लिया एवं वैष्णव धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। सुदर्शन चक्र का स्मरण पाठ भगवान श्रीहरि की सामीप्यता और शरण में रखता है )
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गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि में दिल खोलकर आप अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य करें …इन दिनों आपके द्वारा दान पुण्य करने से उसका अक्षय फल प्राप्त होता है।

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आप प्रतिदिन छोटी कन्याओं को कोई न कोई उपहार अवश्य जी दें । अपने माता पिता, बहन-भाई और पत्नी को भी कोई न कोई उपहार देकर चकित जरुर करते रहें, गरीब और असहाए की मदद करने का मौका तो बिलकुल भी न गवाएं। यकीन मानिये उन सभी के मुख से आपके लिए शुभ वचन निकलते ही रहेंगे ।
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घर के छोटे बच्चो विधार्थियों से माता दुर्गा को केले का भोग लगवाएं फिर उनमे से कुछ केले दान में दे दें एवं बाकी केलो को प्रसाद के रूप में घर के लोग ग्रहण करें इससे बच्चों की बुद्धि का विकास होता है।
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नवरात्र में दो जमुनिया रत्न लेकर उसे गंगा जल में डुबोकर घर के मंदिर में रखे फिर हर शनिवार को माता दुर्गा का स्मरण करते हुए उस जल को पूरे घर में छिड़क दें, घर के सदस्यों के बीच में प्रेम बड़ने लगेगा । इसके बाद पुन: इन रत्नों को गंगा जल में डुबोकर मंदिर में रख दें ।इस प्रयोग को नवरात्र से ही शुरू करें तो अति उत्तम है। l
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आचार्यशालिनीमल्होत्रा

Fortuna lord and its placement

If Fortuna Lord is in the strong position in the birth chart then, it will help you to experience good results associated to the Fortuna sign and lord. If it is afflicted by – malefic aspects, association or bad placement in the unfavorable sign then, it will harm the significations connected with the Fortuna Lord.

First House

Good health, gain, happiness by the native’s own efforts, progress, happiness.

In case of affliction to it then it gives delays and troubles in above matters.


Second House

Financial success, happiness and gain through property, gain by employment and business, protection and promotion through business and friendship.

In case of affliction to it then it gives delays and troubles in above matters.



Third House

Good relations with the co born, Happiness through friends, relatives and journeys, good communication powers, Gain through intellectual affairs. One may be advisor or a secretary and gain or take up agencies profitable to him without exertion.



Fourth House

Assets, vehicles, mental peace, Pleasant, harmonious, domestic surroundings. Fortunate, gain through property, treasure or other hidden things or produce of the earth, minerals, metals etc. Investment on landed property will be beneficial. A wealthy person. Good health and mental attitude.

If afflicted then it it gives problems related to the above discussed matters.


Fifth house

Good education, Lovable, enthusiastic, intelligent, Investments, speculation and good relations with the children. Good artistic bent, successful in the art, singing and film industry.


Sixth house

Hard worker, less enemies, debt free life, self controlled, competitive, gain through job, success in the litigation. Helpful relative – uncles etc.

Seventh House

Good conjugal life, Gain through partners, success and growth after marriage, successful business partnerships, long lived, victory over enemies, success in dealing with women and in marriage or partnerships.

In case of afflicted then, obstacles, delays and hindrance, late marriage.

Eighth House

High class or research level education, deep thinking, stable, researcher, gain through investigation agency, mining, scholar, researcher, gain through business, inheritance, insurance, gratuity, bonus, profits through lands.


If afflicted less favorable financial circumstances, disappointments etc.

Ninth House

Lucky, get benefits from the long travels, fortunate for the father, good education, success in abroad land, God’s blessings at the difficult and odd times in life, success through religious and charitable institutions, money through working as travelling agent, exports and imports. Ambitious for higher studies and higher status etc.

If afflicted then negative results related to the above stated matters.



Tenth House

Good career life, success in career, self made man, domestic gain and from relatives, name, fame and good identity in professional life, will reach highest rank of service or profession.

If afflicted then reverse the matters.



Eleventh House

Gains through the self efforts, beneficial friends and helpful brothers, profitable business, realization of hopes and materialization of desires, pleasure, profits and permanent tie of friendship with powerful people Helpful to others and gain through relatives.

Afflicted may reverse results than above.


Twelfth House

Good control over the financial expenses, can tackle over the major losses of life, good health conditions, benefits from the import and export business, foreign travel or settlement, great victory after troubles, fortunate in secret activities and investments.

Afflicted Fortuna lord may sour the above stated matters as stated above.